अच्छी खबर : आगरा में दिखा विलुप्तप्राय गिद्धों का झुंड
क्यों है संकटापन्न की श्रेणी में है ?
इसका मुख्य कारण बताया जा रहा है कि दर्द कम करने वाली दवा के रूप में एक दवा दी जाती है । और इस दवा को खाने के बाद यदि किसी पशु की मौत हो जाती है तो उसका मांस खाने से गिद्ध मार जाते है । अथवा कभी कभी जीवित रहने पर उनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है।
भारत , पाकिस्तान और नेपाल में हुए सर्वे में मारे गिद्धों के शरीर में डाइक्लोफेनेक के अवशेष मिले है।
उपचार के बाद पशुओं की शरीर में इस दवा के तत्व मिले। उपचार के बाद पशुओं के शरीर में इस दवा के रसायन घुल जाते है । और जब ये पशु मरते है तो उनका मांस खाने वाले गिद्धों के किडनी और लीवर को काफी नुकसान पहुंचता है जिससे वे मौत के शिकार हो जाते है । इन्ही कारणों से इनकी संख्या तेजी से कम हुई ।
बचाव के लिए सरकारी प्रयास :
१. अनजाने विषाक्त पदार्थों के कारण होनेवाली मृत्यु दर को कम करना।
२. गिद्धों के अंगों के व्यापार में रोक लगाने को उठाए जायेंगे कड़े कदम।
3. नॉनस्ट्रॉयड एंटी इन्फ्लेमेटरी दवाओ के कारण बढ़ी मृत्यु दर घटाना ।
4. शिकारियों द्वारा किए जाने वाले जहर के उपयोग को प्रतिबंधित करना।
5. सभी सदस्य देशों द्वारा राष्ट्रीय गिद्ध टास्क फोर्स का गठन किया जाना ।
6. 2029 तक गिद्ध बहु प्रजाति कार्य योजना के मूल्यांकन की रिपोर्ट जारी करना ।
7. मवेशियों के इलाज में प्रयुक्त दवाओं को देश के कंट्रोलर जनरल द्वारा प्रतिबंधित किया है।
8. कुछ प्रमुख राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश , त्रिपुरा , महाराष्ट्र कर्नाटक और तमिलनाडु में गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र की स्थापना ।
पक्षी विशेषज्ञ dr. मुकुल पंड्या ने बताया कि हिमालयन ग्रिफन या जीप्स हिमालयंसिस एक बड़े आकार का फीके पीले रंग का गिद्ध होता है जो सम्पूर्ण क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी गर्दन सफेद और पीले रंग की होती है। इसके पंख काफी बड़े होते है और पूंछ छोटी होती है। ये हिमालय में 5000 मीटर तक उड़ सकते है। ये गिद्ध दिन के समय सक्रिय होते है और प्रायः मारे हुए जानवरो को खाते है। कभी शिकार नहीं करते । कीठम के यमुना क्षेत्र में दिखना अच्छी खबर है। गिद्ध संरक्षण कार्ययोजना 2025 की मंजूरी के बाद ये ताजनगरी के लिए खुशी का पहलू है।



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