नई खोज: अब बुढ़ापे में भी जवान दिखेंगी आपकी त्वचा


 हर इंसान को पसंद होता है हमेशा जवान दिखना लेकिन पहले यह केवल कोरी कल्पना थी। लेकिन वर्तमान में वैज्ञानिकों के अथक प्रयास द्वारा यह सच होने जा रहा है। दरअसल बब्राहम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है । जिससे त्वचा की कोशिकाओं को फिर से जवान बनाया जा सकता है। इससे अब शायद त्वचा को देखकर किसी की उम्र का अंदाजा लगाना कठिन हो जाएगा । 

इस तकनीक के जरिए विज्ञानी कोशिकाओं की जैविक घड़ी  (बायोलॉजिकल क्लॉक) को 30 साल पीछे रिवाइंड करने में कामयाब हुए है। 

क्या है biological clock 

जीवो के शरीर में समय निर्धारण की एक समुन्नत व्यवस्था होती हैं। जिसे बायोलॉजिकल क्लॉक कहते है। इसका मूल स्थान हमारा मस्तिष्क होता है। हमारे मस्तिष्क में करोड़ों कोशिकाएं होती है जिन्हे हम न्यूरॉन कहते है । ये कोशिकाएं पूरे शरीर की गतिविधि को नियंत्रित एवं निर्धारित करती है।

यह उपलब्धि पहले के रिप्रोग्रामिंग के समय से काफी ज्यादा है । यह शोध ई लाइफ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। 

कैसे काम करती है यह तकनीक 

इसमें बताया गया है की विज्ञानी इसके जरिए पुरानी कोशिकाओं के कामकाज को आंशिक तौर पर पुनर्बहाली के साथ ही जैविक उम्र के मॉलिक्युलर युक्ति को पुनर्जीवित कर सकते है।

जैसे जैसे हमारी आयु बढ़ती है । हमारी कोशिकाओं की कामकाजी क्षमता घटती है। और जीनोम एकत्रित होकर उम्र का संकेत देती है । ऐसे में regenerative biology का लक्ष्य यह होता है की पुरानी कोशिकाओं की मरम्मत करें या फिर उसे बदल दे । इस रिजनरेटिव बायोलॉजी में सबसे अहम टूल होता है उत्प्रेरण (catalyst) से stem cell पैदा करना । यह कई चरणों की प्रक्रिया का परिणाम होता है और प्रत्येक चरण कुछ निशानों को मिटा कर उसे विशिष्टता प्रदान करता है। 

यह किस प्रकार भिन्न है अन्य तकनीक से 

नई तकनीक में विज्ञानी stem cell बनाने के लिए जो प्रक्रिया अपनाते है उससे रिप्रोग्रामिंग को रोककर कोशिकाओं की पहचान को पूरी तरह से मिटाने की समस्या पर काबू पा लेते है। इससे शोधकर्ताओं की रिप्रोग्रामिंग और उसे जैविक रूप से युवा बनाने में सटीक संतुलन बनाने का मार्ग मिला है। 

इसके साथ ही कोशिकाओं के विशिष्ट कामकाज को बहाल भी किया जा सकता है। 

इतिहास :

शिनाया यामांका पहले ऐसे विज्ञानी हुए जिन्होंने वर्ष 2007 में सामान्य कामकाजी वाली कोशिकाओं को विशिष्ट कामकाज वाली कोशिकाओं में बदलने में कामयाबी पाई। Stem cell की रिप्रोग्रामिंग की पूरी प्रक्रिया में लगभग 50 दिन लगते है । जिसमे चार अहम मोलेक्यूल का इस्तेमाल होता है । वैज्ञानिक के नाम से इसे यामांका फेक्टर के नाम से जाना जाता है।

नई विधि मैचुरेशन फेज ट्रांसिएंट रिप्रोगार्मिंग कहते है। इसमें कोशिकाओं को 13 दिन के लिए यामांका फैक्टर के संपर्क में रखा जाता है। इस दौरान कोशिकाओं में उम्र सम्बन्धी बदलाव हट जाते है। और कोशिकाएं अस्थाई तौर पर अपनी पहचान खो देते है। इसके बाद आंशिक तौर पर प्रोग्रामिंग वाली कोशिकाओं को सामान्य स्थितियों के बढ़ने दिया गया ताकि यह पता किया जा सके की क्या त्वचा कोशिकाओं का कामकाज फिर से बहाल हो गया है। जीनोम विश्लेषण में पाया गया की कोशिकाओं में त्वचा कोशिकाओं (फाइब्रोब्लास्ट) के कैरक्टर मार्कर हासिल कर लिए और इसकी पुष्टि रिप्रोग्रामिंग वाली कोशिकाओं में कोलेजन का उत्पादन देखने से हुई । कोइशिकाओं के यौवन हासिल करने के प्रदर्शित करने के लिए शोधकर्ताओं ने एजिंग के हॉलमार्क में हुए बदलाव को परखा । 

इंस्टीट्यूट की वुल्फ रेकी lab के शोधकर्ता dr दिल जीत गिल ने बताया कि हम अपने प्रयोग के इस्तेमाल में यह  पता करने में सक्षम हुए की किस हद तक रिप्रोग्रामिंग की जा सकती है। 

इस क्रम में शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं की उम्र मापने के लिए कई उपायों पर विचार किया इनमे पहला एजेनेटिक क्लॉक है। जिसमे पूरे जीनोम ने फैले केमिकल tag उम्र को इंगित करते है। दूसरा ट्रांसकृप्तों है जिसमे कोशिकाओं से बने सभी जीनोम को परखा जाता है। इन दोनो के इस्तेमाल से शोधकर्ताओं ने पाया कि रिप्रोग्रामिंग वाली कोशिकाएं 30 साल पहले के रिफस डाटा सेट से मिलती जुलती है। 

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